फाँसी
बड़े खुश पलटू भैया थे, कल ही था शादी करवाया।
सुंदर दुलहिनिया संग अपने, केवल था एक दिन ही बिताया।
सुबह सुबह पतलून पहनकर, सजधज कर के बाहर आया।
एक नजर जब पड़ी पेड़ पर, उसका माथा है चकराया।
झटपट सढुवाईन को अपने, घिर घिर कर फोन लगाया।
एक्के साँसे सब घटना के, अनपढ़ पलटू ने खूब सुनाया।
या तो कोई तांत्रिक होगा, जिसने ये करतब लटकाया।
या तो किसी पड़ोसी ने है, मेरा विकास मार्ग भटकाया।
और सुबह में जब जीजा ने, साली को है फ़ोन पठाया।
मटक मटक साली ने भी, जीजा जी से खूब बतियाया।
कैसा रहा हरिद्रा चुम्बन, बड़ा सबेरे याद है आया।
या मेरे गजरे की खुशबू, तुमको रात भर है जगाया।
ऐसी बात नहीं सुन साली, दर पर एक कमाल है आया,
जो स्वयं ही छिप जाते थे, उनको कौन यहाँ लटकाया।
बिल्कुल नई ससुराल रही, कोई यह समझ न पाया।
साला सढुवाईन सरहज संग, बग्गी बैठ के घर आया।
लगी सोखाई होने जब, सोखा लंगोट खूब सरकाया।
निबिया गाँछ के नीचे तब, प्रशासन ने कैंप लगाया।
बैठे नेता बोल उठे, देख के मन बड़ा शरमाया।
इसकी गहन जाँच होगी, यदि मैं विधायक बन आया।
धूप कपूर अगरबत्ती की, लौ ने रसरी को गरमाया।
तभी सरककर उसमें से, एक पत्र नीचे गिर आया।
कौतूहल में सब भौचक्के, एक अगुवा झट पत्र उठाया।
आप बीती एक गिरगिट ने, आत्महत्या पत्र में सुनाया।
फाँसी हमें दिया न किसी ने, हार कर मैंने गर्दन लटकाया।
आप सब निकले हमसे आगे, मैं ज्यादा रंग बदल न पाया।
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अशोक शर्मा,लक्ष्मीगंज,कुशीनगर,उ.प्र.