सवर्ण, अवर्ण और बसंत
वर्णों की इस भारतीय बेमेल दुनिया में
कोई सवर्ण है तो कोई अवर्ण
सवर्ण यदि बसंत है तो
अवर्ण उससे
छत्तीस के रिश्ते पर धकेला गया पतझड़
ऋतुओं में तो बसंत और पतझड़ ने
एक दूजे का कुछ नहीं बिगाड़ा
दोनों स्वाभाविक स्थितियों में
स्थिर डिग्री में गतिमान हैं
यहां मानुष बीच मगर
अस्वाभाविक बसंत से ही
पतझड़ की प्रास्थिति का सृजन है
सो
हकमारी बसंत है तो
वंचना पतझड़!
संवरी सूरत के
बसंत सदृश दिख सकते हम
बसंत द्वारा हमारे लिए गढ़ी गईं
विषम परिस्थितियों से लड़कर भी
मुदा, वे बसंत बने हुए हैं सेंत में
पतझड़ होने के मुकाबिल होकर भी
न जाने किस जमाने से
हमारे पुरखों से
बसंत की हर थाती और हक कोटे को
हर–छीन–लूट
हमारे जीवन से।