फ़ितरत
दिल के कमरे में बिखराकर, तस्वीरों का यूं फ़ैलाना
यादों की फ़ितरत में आख़िर, इतनी बेतरतीबी क्यों है
झुकी पलक में धीरे धीरे, गुमसुम गुपचुप खूब चहकना
नैनों की फ़ितरत में आख़िर, इतनी मदहोशी सी क्यों है
तन्हाई के आलम में यूँ, अक्सर उनका ज़िद पर अड़ना
ख्वाबों की फ़ितरत में आख़िर, इतनी बेताबी सी क्यों है
दूर हवा के पंख लगा कर, बादल के संग उड़ते जाना
ख्वाहिश की फ़ितरत में आख़िर, इतनी बदगुमानी क्यों है
राह में घायल होकर भी यूँ, तूफानों से डटकर लड़ना
उल्फ़त की फ़ितरत में आख़िर, इतनी बेख़ौफ़ी सी क्यों है
बात बात पर प्यार जताना, रोकर हँसना हँसकर रोना
इस दिल की फ़ितरत में आख़िर, इतनी नरमाई सी क्यों है
डाॅ. सुकृति घोष
ग्वालियर, मध्यप्रदेश