— फ़ितरत —
प्रकृति का नियम न बदलेगा
बदलना तुझ को होगा हर पल
उस की फितरत है अलग सब से
तुम्हे चलना ही होगा उसके संग मिलकर !!
बेमौसम को तुम अलग न समझो
उस की आदत बड़ी पुरानी है
जब धरती पर होती है जरूरत
वो कल कल जल प्रवाह कर देती है !!
जीवन जीने को दिया वृक्षों संग
तुमने आरी चला कर दिया कत्ल
उसने दी थी छाया सब के लिए
पर तुम्हारी फितरत ने किया सब कत्ल !!
उसके स्वभाव में रची बसी थी जिंदगी
तुम्हारी ही फितरत खराब हो गयी
प्रकृति के साथ मिलकर जो न चला
उस की ही तो जिंदगी खराब हो गयी !!
कितने करोड़ों वर्षों से सब को संभाल रही
अपनी फितरत से दुनियाँ आबाद कर रही
बदलो स्वभाव अपना अगर जीवन चाहिए
अपने संग संग औरों की भी तो सोचिये !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ