फ़ितरत का रहस्य
किसकी क्या फ़ितरत ,
किसको है पता ,
जिसने इसको समझा,
फ़ितरत कुछ और थी।
बड़ी मासूमियत होती है,
फ़ितरत छुपती है जहाँ,
सदा चौंका देती है अंततः,
पीठ पीछे वार फ़ितरत का।
फ़ितरत बदलती नहीं किसी की,
जो दिखता वह बाहरी आवरण था,
अंदर की प्रकृति सत्य होती,
फ़ितरत का सत्य पकड़ना मुश्किल होता।
फ़ितरत सुंदर चेहरे पर काला दाग़,
समक्ष होकर भी नजर ना आए,
चांद का टुकड़ा समझ आईना मिल जाए,
फ़ितरत के रहस्य का प्रतिरूप समय का आईना दिखलाए।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।