फ़रेबी दोस्त
फ़रेबी दोस्त को घर बुलाकर देख लो।
साॅंप को कभी दूध पिलाकर देख लो।
फ़िर भी दुश्मन में दोस्त दिखाई दे ग़र,
तो अपनी आस्तीन हिलाकर देख लो।
क्या उसकी तलवार हिफ़ाज़त करेगी?
तुम एक बार गर्दन झुकाकर देख लो।
क्या उसके हाथ में खंजर नहीं दिखता?
तो कभी उसको गले लगाकर देख लो।
उसकी नफ़रत उसकी ऑंखों में मिलेगी,
तुम बस उससे नज़रें मिलाकर देख लो।
उसकी असली शख़्सियत जाननी है तो,
जाओ उसकी बस्ती में जाकर देख लो।
उसकी ज़ुबाॅं से अपना सच सुनना है,
तो फ़िर उसको शराब पिलाकर देख लो।
संजीव सिंह ✍️
(स्वरचित एवं मौलिक)
५/१/२०२१
नई दिल्ली