फर्क नहीं पड़ता हे भाई ___ मुक्तक
पल दर पल संभल कर चल शिकारी बैठे हे भाई।
कहां से तीर चल जाए,कौन कब ऐंठे रै मेरे भाई।।
घाव चाहे दिल पर लग जाए, प्राण भी चाहे चले जाए।
फर्क नहीं पड़ता है उनको, समझ जा रे मेरे भाई।।
राजेश व्यास अनुनय
पल दर पल संभल कर चल शिकारी बैठे हे भाई।
कहां से तीर चल जाए,कौन कब ऐंठे रै मेरे भाई।।
घाव चाहे दिल पर लग जाए, प्राण भी चाहे चले जाए।
फर्क नहीं पड़ता है उनको, समझ जा रे मेरे भाई।।
राजेश व्यास अनुनय