फरेब
जिंदगी हमें कितने
फरेब दिखलाती है,
कभी तो हंसाती है
कभी तो रूलाती है।
जिंदगी का फलसफा
क्यों कर किसी को,
समझ न आया अभी
बाद आजमाइशों के।
ठोकरें खाती है फिर भी
संभल जाती है जिंदगी,
देते रहना इम्तिहान ये
फिदरत है इंसान की।
क्या खोया क्या पाया
ये हिसाब रखना भी,
मुमकिन नहीं है फिर भी
हिसाब लगाती है जिंदगी।
फुर्सत के पलों में रहकर
निहारती है ये ज़िन्दगी,
सोचती हूं सांसों के सफ़र में
जिंदगी के वक्त गुजारती हूं।
जिंदगी जिंदादिली है तू
कोई मातम तो नहीं है तूं,
जैसी भी तू है मेरी ही है
तुझको चूम लेती हूं मैं।
कहते हैं कि उमर के
सफ़र में रोना मना है,
तभी तो ऐ जिन्दगी तेरे
हर पल को जी लेती हूं।
ऐ खुदा तूने बख़्शी है
ये प्यारी सी जिन्दगी,
बिना किसी शिकायत के
बसर करती हूं जिंदगी।
दीपाली कालरा