फरेब है जमाने में
अंधेरे चंद लोगों का गर मकसद नहीं होते
यहां पर लोगों के बीच में फिर सरहद नहीं होते
न भूलो ये ऊंचाई तुमने हम से छीनी हैं
हमारा कद नहीं लेते तो आदमकद नहीं होते
फरेबों की कहानी है तुम्हारे हर फसाने में
बहुत होते तो भी हर कहानी में हम नहीं होते
मिल जाती सभी मोहब्बतें मांग कर ज़माने में
फिर हर जिंदगी में कोई न कोई गम नहीं होते
डा.राजीव जैन “सागर”
सागर मध्य प्रदेश