फरियाद फकीर की ….
उम्र यूँ रेत सी फिसलती रही
लाख बंदिशों के बावजूद बिखरती रही।
ना मुकाम पाया ,ना मुकाम का कोई निशां
जिन्दगी तो मेरी राह में निकलती रही …..
अरमां थे कि ख्वाबों का बनाएँगे आशियाना
जोडने लगा मैं तिनके – तिनके ,चुन – चुन के
मगर आँधियाँ मुझसे होकर फिर गुजरती रही।
पाने तूझे क्या क्या न तलाशा ए – परवरदिगार
रूह तलक तुझे ढूँढ़ने निकलती रही …..
सुनकर तेरी आहट भटकती रही …।
सुना है कि तू खुद्दार है हे खुदा ,
होता नहीं तू अपने बंदे से जुदा ,
क्यों ना आ पाया तू मेरी पुकार पर
मेरी आहें तेरी खुशबू को मचलती रही ।
कुछ ऐसा कर करतब ओ बाजीगर कि ….
मेरा यकीं ना उठ पाये तुझसे तेरे दर से
बस एक तू ही मेरा सच्चा राजदाँ लगता है
तेरे सजदें में मेरी उम्मीद अब तलक पलती रही ।
. उम्र यूँ रेत सी फिसलती रही …..
एक यही फरियाद है इस फकीर की ए मनु
हिफ़ाजत की चादर तू फैला मेरे मौला ,
रूह मेरी उस साँचे मे ढ़ल जाए
जिसमें मीर औ गालिब की ढ़लती रही …..
उम्र यूँ रेत सी फिसलती रही …….
कवि – मनोज कुमार सामरिया “मनु”