फँसा है
इश्क!! मजहब और इजाजत में फँसा है
जात -पात, ऊँच -नीच की आदत में फँसा है
लानत आज भी जिन्दा है अनायास वसूलों में
तभी तो आदमी इच्छाओं की शहादत में फँसा है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
इश्क!! मजहब और इजाजत में फँसा है
जात -पात, ऊँच -नीच की आदत में फँसा है
लानत आज भी जिन्दा है अनायास वसूलों में
तभी तो आदमी इच्छाओं की शहादत में फँसा है
-सिद्धार्थ गोरखपुरी