प से पैसा ~~
आइये आपको लेकर चलते हैं आज एक गांव में. नाम है मदनपुरा गांव. यूं तो ये एक छोटा सा ही गांव है करीब दो सौ या तीन सौ ही घर होंगें यहां. पर घर कितने भी हो, एक घर ऐसा था जो उस गांव में बड़ा ही मशहूर था. अरे अरे बता रहा हूँ बता रहा हूँ, उस घर में एक बुढ़िया रहती थी जो अपनी आदतों से पूरे गांव में छाई हुई थी, नाम था मदनी ताई, नहीं नहीं इनके नाम पर गांव का नाम नही पड़ा था. गांव वाले इन्हें सिर्फ ताई कह कर बुलाते थे। इनकी उम्र होगी करीब 95 वर्ष की पर देखने से 65 से ज़्यादा की ना लगती थीं। दिमाग ऐसा की आज की औरतें धोखा खा जाएं,चील सी पैनी नज़रें,चाल ऐसी की साईकल सवार भी गच्चा (धोखा) खा जाए, कान ऐसे की ज़मीन पे चलती चींटीं की आवाज़ सुन लें, ज़बान की तेज़ी के आगे तो गांव के नऊवों की कैचीं भी फेल थी और मुँह में 32 के 32 दांत सही सलामत काटने को तैयार थे। बस ताई के मशहूर होने की एक वजह थी… ताई की- कंजूसी। अब आप सोच रहे होंगे इसमें क्या बड़ी बात है, कंजूस तो कोई भी हो सकता है। पर हमारी ताई तो वो हदें पार कर जातीं थीं जो कोई ना कर पाता था।
कंजूसी की हद ऐसी की पूरा परिवार जिसमे 6 लोग थे, एक ही बिस्तर पे सोते थे। एक तरफ ताई, फिर बहू पायल, फिर ताई का बेटा और पायल का पति कल्लू, फिर कल्लू के ऊपर उसकी 4 साल की बेटी गुड्डन। अब आप कहेंगे ये तो 4 ही लोग हुए बाकी 2 कहाँ गए, तो बता रहे है आपको एक लड़का गुड्डू सिरहाने और एक लड़का पुन्नू पैताने, सब परिवार एक बिस्तर पर सोता था। ये ना पूछियेगा की सब एक साथ सोते थे तो बच्चे कहाँ से आये । खैर छोड़िए ये सब, आइये आगे सुनाते हैं। तो जो ताई थीं वो अपना सारा पैसा एक संदूक में छिपा कर रखतीं थीं और कोई हाथ लगा दे उसे तो समझो उसकी खैर नहीं। बहू पायल अपनी सास से कतई कम ना थी, वो शेर तो ये सवा शेर। ना कंजूसी में नहीं, दिमाग चलाने में। सास से ज़्यादा पैसे तो ना ऐंठ सकती थी पर चालाकी से कुछ काम लायक निकलवा लिया करती थी। पूरा गांव ताई की कंजूसी से परेशान था। एक बार गुड्डू को बाल कटाने ले गयी थी ताई, नाई से पैसे पूछे तो बोला 20 रुपये लगेंगे। ताई महान थीं बोली 5 रुपये ले और आगे के बाल कतर दे।
अगर ताई के हाथ कम्पट लग जाये तो समझो 2 दिन तो चलेगा ही, एक कम्पट 5 पहर चूसती थी ताई। ये तो आलम था कंजूसी का।
एक रात ताई के घर चोरी हो गयी। घर मे चोर को कुछ ना मिला तो वही पुराना दिख रहा संदूक उठा कर ले गया। अगले दिन ताई ने जब देखा तो मानो साँसें गले में अटक गयीं। ना रोना सूझ रहा था ना चिल्लाना। कमरे से बाहर निकलते ही ज़मीन पे धराशायी हो गयी। कल्लू, पायल, बच्चे सब दौड़े दौड़े आये, ताई बोली संदूक चोरी हो गया और बेहोश हो गयी। जल्दी से पुलिस बुलाई गई। गांव वाले सब घेर कर खड़े हो गए कि क्या बात हो गयी। किसी तरह ताई होश में आई तो कुछ बोल ना पा रही थी। बस एक ही अक्षर पर उसकी सुई अटक गयी थी। प……प…..प….।
कल्लू ने सोचा पानी मांग रही, दौड़ कर गया पानी पिलाया। फिर ताई बोली प….प….प…, पायल बोली लागत है अम्मा मरै वाली हैं, इनका पनीर खाने का बड़ा मन था,कहीं वही की ज़िद तो ना कर रहीं हैं? कल्लू ने पुन्नू को दुकान भेजा, वो 20 ग्राम पनीर लाया और ताई के मुँह में डाला गया। ताई तुरंत गटक गयी। अब पुलिस पूछे ताई कुछ और बतइहयो। ताई फिर बोली प…प….प….। इंस्पेक्टर गुस्से में बोला, ये प…प … सुनकर प से पगला गयी है पुलिस आगे भी बोलो कुछ। ताई फिर वही बोलने लगी। कल्लू को लगा मरने वाली है तो पंडित को बुला रही होगी। गुड्डू से पंडित को बुलवाया, उसको देख कर ताई फिर बोली प…प…प… अब सबका सिर चकराया। पंडित बोले प्रसाद मांग रही होगी। फिर प्रसाद खिलाया गया। मतलब ताई का मुंह सबने मिलकर प से पतीला बना दिया था खिला खिला कर और ताई का सुर प पर ही अटका हुआ था। प..प… बोलते बोलते आखिर ताई परलोक सिधार गयी। और पुलिस को अपने केस के लिए चोरी के आरोप में सारे प वालों को हिरासत में लेना पड़ा। बहू पायल, गांव का पासी, पुजारी पुत्तनलाल, पंकज नाई सब कब्जे में। मतलब ताई ने प से परिवार, पड़ोसी और पूरे गांव को फसा दिया था। पर असल बात तो कोई ना जान पाया था कि ताई तो प से पैसा बोलने की कोशिश कर रही थी। एक कंजूस से और क्या उम्मीद की जा सकती है। सही ही कहा है किसी ने…चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाये ।
◆◆©ऋषि सिंह “गूंज”