पढ़ते सब शौक से है ग़ालिब को मर कर भी जिंदा दास्तान बन बैठे है
शब्द भी गुलाम बन बैठे है
जैसे तेरे मेहमान बन बैठे है
दिल में दफ़न कितने अरमान है
अब हम शमशान बन बैठे है
दुनिया के बाजारों में
खुला समान बन बैठे है
पढ़ते सब शौक से है ग़ालिब को
मर कर भी जिंदा दास्तान बन बैठे है
जीना नही आता सदाकत के साथ
आज मुखोटे की दुकान बन बैठे है
अब वो मुसाफिर नही राह के
लगता है भगवान बन बैठे है
भूपेंद्र रावत
28/11/2017