प्लेटफॉर्म
एक बार ट्रेन के इंतजार में मैं प्लेटफॉर्म पर खड़ा था सर्द कोहरे से भरी रात के 2:30 बज रहे थे किसी को लिवाने गया था । प्लेटफॉर्म के बीच में एक चाय का स्टाल था जिसकी भट्टी पर चारों ओर 7 – 8 चाय वालीअलुमिनियम की केतली भट्टी की आग के चारों ओर गोलाई में रखी हुई थी तथा उतने ही चाय बांटने वाले वेंडर खड़े थे । ट्रेन के आने में अभी कुछ समय था , अतः मैं उनकी बातें और गतिविधियां बेध्यानी से देख और सुन रहा था ।उनमे से कुछ वेंडर्स चाय पी रहे थे कुछ खाली खड़े रहे थे , अचानक मैंने देखा कि उनमें से एक चाय बांटने वाला चाय पीते पीते बुरी तरह का मुंह बना कर पलटा और उसने एक चाय की केतली का ढक्कन खोला तथा उसमें अपने कप की बची आधी झूठी चाय केतली में वापिस पलट दी , उसकी देखा देखी उसके अगल बगल जो दो-तीन और चाय वाले वेंडर्स थे उन्होंने भी अपनी बाकी बची हुई चाय पीते-पीते झूठी चाय केतली में डालकर काउंटर पर अपनी पीठ टिका कर और हाथ बांधकर रेलगाड़ी का इंतजार करने लगे ।यह देख मैन चाय पीने का विचार त्याग दिया ।
किंतु रात सर्द थी और समय बिताने के लिए और कुछ गरमाई के लिए मैंने सोचा कि पास में स्थिति एक प्रसिद्ध कॉफी की ब्रांड का स्टाल था जिसमें कि एक ऑटोमेटिक काफी प्लांट लगा था । मैंने सोचा यह हर तरफ से बन्द है अतः सही ही हो गा क्यों ना इससे एक बढ़िया कॉफी पी जाए तो अपने मन में काफी के स्वाद का ध्यान करते हुए मैंने उससे
कहा -भैया एक कॉफी देना ।
उसने मुझे प्लांट से कॉफी एक प्लास्टिक के कपमें ढाल कर दी। उस काफी का रंग अजीब था और पीते ही मुझे लगा कि ( हालांकि मैंने कभी पिया नहीं है )लेकिन उसका स्वाद गधे के मूत्र से भी ज्यादा खराब था ।
मैंने उससे कहा यह क्या है इसमें तो कुछ भी नहीं है ।
उसके मुंह में बहुत सारी तमाखू भरी होने के कारण उस इंधेरी रात में मौन धारण करते हुए स्पाइडर मैन की तरह काउंटर की मुंडेर पर बैठे-बैठे मुझे हाथ के पंजे से रुकने ठहरने का इशारा किया फिर उसके बाद थोड़ा झुक के उसने कॉफी प्लांट के पैनल बाहरी दरवाजे को खोला तो जिस नोज़ल से काफी पाउडर निकलता था उसमें उसने एक जली बुझी जूठी बीड़ी का टोंटा घुसा रक्खा था । फिर उसने एक बीड़ी के बंडल की कागज़ की पन्नी उठाई और नोज़ल में ठुसे बीड़ी के टोटे को बाहर खींचा तो उसमें से कॉफी मिला मिल्क पाउडर गिरने लगा ,उसने उसमें से थोड़ा सा पाउडर उस पन्नी में डाल कर मुझे दे दिया और इशारा किया कि लो इसे अपनी काफी में डाल लो । मैंने उसके कथनानुसार उस पाऊडर को इस्तेमाल कर लिया पर उस समय मेरा विवेक मुझसे कह रहा था कि मुझे यह कॉफी छोड़ देनी चाहिए नहीं पीनी चाहिए परंतु ऐसे समय में मेरे अंदर का दरिद्र ब्राह्मण जागृत हो गया और मैंने उस झूठी बीड़ी के टोटे के बीच से से होकर निकले हुए कॉफी के पाउडर को अपनी काफी में डाल लिया कुछ उसी भाव से जैसे चाय में पड़ी मक्खी को मैंने निचोड़ कर चाय पी ली हो ।
थोड़ी देर बाद उन वेंडर लोगों ने एक करीब 15 – 20 लीटर की क्षमता वाला एलमुनियम का भगोना निकाला जिसमें करीब 5 किलो मैदा और सामने रेल की पटरी के पास लटके हुए होज पाइप से पानी लेकर उस मैदे को घोल लिया उसमें कुछ लाल मिर्च जैसा पाउडर मिलाया नमक मिलाया और उसके पश्चात उसे अपनी हथेली और कोहनी तक अपनी भुजा उसमें डुबा कर खूब चलाया फैंटा फिर उसने अपने एक थैली में से छोटी सी एक डिबिया निकाली उसमें से एक चुटकी पाउडर निकाला और उसे उस भगोने में घोल दिया । मेरे देखते देखते ही वह पूरा मैदा बेसन के रंग में बदल गया उसके पश्चात बगल की एक परात में उसने तिकोने ब्रेड के पीस काट कर रख रखे थे उन कटे हुए तिकोने टोस्ट को बेसन जैसे दिखने वाले मैदे के घोल में डुबोकर एक कढ़ाई के खोलते तेल जैसे द्रव्य में डालकर पकाने लगा ।
जब कभी अपनी ऐसी यादों को मैं विस्म्रत करना चाहता हूं तो मैं अपनी उस सुहावनी सुबह पांच बजे के परिदृश्य को याद करने लगता हूँ जो कि कभी मैंने लखनऊ के धुले हुए प्लेटफार्म पर गोमती एक्सप्रेस के प्लेटफार्म पर लगने की प्रतीक्षा में गुज़ारी थी । सभी सवारियां नहाई धोई धनाढ्य वर्ग की सी अच्छे कपड़ों में अच्छे सुगंधित परफ्यूम लगाए इधर उधर फुर्ती से टहल रहीं थी । कुछ लोग इधर-उधर फूलों के गुलदस्ते लिए भी घूम रहे थे । हवा खुशबूदार एवं सुहावनी थी । अपेक्षाकृत नए खुले व्यवसायिक जगत के रेस्तरां अपनी तीन सितारा संस्कृति और लगभग तीन गुना मूल्य पर सेवायें दे रहे थे ।
या फिर कभी किसी पहाड़ी रास्ते अथवा किसी निर्जन मोड़ पर स्थित किसी खोखे पर सीमित संसाधनों किन्तु शुद्ध दूध , अदरख , चीनी आदि से चूल्हे की आंच पर बनी चाय के स्वाद को याद कर लेता हूं ।