प्रेरणा
प्रेरणा
क्षणभंगुर सी लहर
उठती है गिर गिर कर
पावक एक जलता हुआ
उर्ध्वमुखी निःसृत धुँआ
चट्टानों की बंजर धरा
लिए हुए है कुछ उर्वरा
फूलते है काँस-काई
दूर खड़े दो शैलों को
जोड़ती है एक खाई
कण-कण की अवधारणा में
क्षीण-किरण की साधना में
निहित एक प्रेरणा है
दृष्टि की एक लक्षणा है
कुचले हुये पुष्प भी
सदा बिखेरते सुरभि
मनु की तुम संतति
रोक मत निज गति
कथ्य-अकथ्य में
हृदय के नेपथ्य में
मन में ध्येय हो
संकल्प का पाथेय हो
प्रेरणा संबल हो
संचित आत्मबल हो
दूर नहीं लक्ष्य है
निकट ही गंतव्य है
-©नवल किशोर सिंह