प्रेरणा एप
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भोर होना नहीं टलता , अंधेरों के डर से
लहरें मंज़िल से भटकती नहीं तूफ़ान से डर के।
दौर ए गर्दिशे चले तो चलता रहे,हम सफर करना नहीं छोड़ेंगे राह की तपिश के डर से।
अब मुश्किलें बढ़ाती हैं मेरा हौसला इस क़दर, कि मुश्किलें पस्त हो रही है मुश्किलों के डर से।
अंग्रेज़ चले गए भारत छोड़ कर , भारतीयों के डर से।
भारतीय छोड़ जाएंगे देश ,शायद यूहीं भारतीयों से डर से।
ऐसे ही कयास लगा रहे हैं शायद कुछ लोग ,
इस लिए किए जा रहे नित नए प्रयोग ,
इस बेसिक शिक्षा पर
, शायद शिक्षकों की प्रतिभा के डर से।
समझ नहीं आता कि यह शासन आखिर चाहता क्या है।
कहां से प्रारंभ है,और आखिर अंत क्या है।
खुद अपने बुने जाल में यह फंसता जाता है।
चाहे कितने एप लागू कर ले यह हम शिक्षकों पर।
पर हम पढ़ाना थोड़े छोड़ देंगे प्रेरणा जैसे एप के डर से ।
हमने मुश्किलों को अपना गुलाम बना रखा है।
खुशियों के शहर में मकान बना रखा है।
रेखा कह दो ज़ालिम शासन से कि नौकरी नहीं छोड़ देंगे इन हवाई फरमानों से डर के।
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प्रेरणा एप समर्पित हम शिक्षकों की कविता