# प्रेरणादायक दोहे
नहीं सलीका आप में , मुझको देता दोष।
पाँव सँभाले खुद नहीं , करे शूल पर रोष।।
भौर हुई चितचोर सी , पुलकित करती अंग।
शांत कांत ये स्वर्ग सी , रहना चाहूँ संग।।
कब कैसे किसका कहाँ , कितने यहाँ सवाल।
जीवन लघु आनंद ले , ज्यादा मत खंगाल।।
शहर उजड़ता देख के , आँखें मत तू मींच।
कौन सँवारेगा इसे , सब लेंगे कर खींच।।
प्रीतम खुद सा और को , करो ज़रा महसूस।
पाप रहे ना पुण्य फिर , कौन रहे मायूस।।
–आर.एस.प्रीतम