प्रेरक संस्मरण
वर्ष 1983 में मैंने हायर सेकेंडरी पास कर ली | किन्तु आगे पढ़ने का मन नहीं हुआ | घर में सबने सुना तो बहुत ही नाराज़ हुए | बड़े भाई इस समय बी कॉम फाइनल के छात्र थे | उन्होंने धमकी देते हुए मेरा बी कॉम का प्रथम वर्ष का प्राइवेट का फॉर्म भरवा दिया और तैयारी करने को कहा | न चाहते हुए भी मैंने पढ़ाई शुरू कर दी | इसी बीच मुझे मेरा एक दोस्त मिल गया जो एक पान की दूकान पर मुंह में पान चबाते और हाथ में तम्बाकू रगड़ते हुए | घर के लोग उसे गुड्डू कहकर पुकारते थे जबकि उसका वास्तविक नाम संजीव रत्न शर्मा था |
मैंने अचानक उससे पूछ लिया कि भाई गुड्डू आजकल क्या कर रहे हो ?
तो बोला – हायर सेकेंडरी हो गयी बस | अब आगे नहीं पढ़ना |
तब मैंने आगे पढ़ाई जारी न रखने का कारण पूछा |
तब उसने कहा – नीलू भाई ( मेरा बचपन का छद्म नाम ) तुम्हें तो घर का पूरा हाल मालूम है |
फिर भी मैंने उसे आगे पढ़ाई जारी रखने के लिए प्रेरित करने की कोशिश की | उसके एक ही जवाब था कि मुझे घर के लोग आगे पढ़ाने के लिए राजी नहीं होंगे |
तब मैंने कहा – कि ठीक है मैं रविवार के दिन तुम्हारे घर आऊँगा और आंटी जी से बात करूंगा क्योंकि उन दिनों घर में फोन नहीं होते थे | मेरे दोस्त की मम्मी सरकारी स्कूल में टीचर थीं और पिता रेलवे में | मैं रविवार को उसके घर साइकिल से गया जो कि मेरे घर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर था |
मैंने आंटी से बात की और उन्हें राजी कर लिया | मैं नोट्स बनाता और उसे समझा दिया करता | इस कार्य के लिए वह लगभग चार से पांच बार मेरे घर आया करता सप्ताह में |
कभी – कभी रात को स्ट्रीट लाइट में बैठकर हम पढ़ाई किया करते चूंकि मेरे घर में भी स्थिति कुछ ठीक नहीं थी |
मेरे घर में बकरियां थीं सो हम दोनों दोस्त बकरियां चराने के लिए दूर मैदान जाते और वहां बैठकर पढ़ाई किया करते | इस तरह मेरी और मेरे दोस्त गुड्डू की पढ़ाई चल निकली | मेरे एक प्रयास का यह परिणाम हुआ कि हम दोनों ने एक साथ बी कॉम , एम कॉम और एम ए अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की |
उसके बाद मैंने लाइब्रेरी साइंस ज्वाइन कर लिया और उसने लॉ की पढ़ाई |
बाद में वह वकील बन गया और मैं लाइब्रेरियन | मेरे दोस्त गुड्डू को अपनी मेहनत पर गर्व था | इसलिए जब भी वह किसी नए व्यक्ति से मिलता तो अपना नाम संजीव रत्न शर्मा के साथ एम कॉम और एम ए अर्थशास्त्र बोलना नहीं भूलता | यह उसके प्रयासों का परिणाम था जिससे वह स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया करता था | तो आपने देखा इस तरह हमारी दोस्ती भी ताउम्र कायम रही |