प्रेयसी
तुम्हीं मेरी कविता हो ,तुम्हीं भाव कल्पना हो
शब्द का आधार तुम्हीं,छंद का उल्लास हो ।
तुम्हीं नयनों की भाषा ,तुम्हीं प्रेम परिभाषा
तुम्हीं मेरे मन प्राण ,चाहतों की प्यास हो ।
सौंप दिया साँस-साँस, अपनी खुशी हुलास
तुम्हीं मनमीत मेरे, तुम्हीं मधुमास हो।
तुम्हीं मेरे सब कुछ ,रहा नहीं पास कुछ
तुम्हीं मेरे धर्म-कर्म, पुण्य के प्रभास हो ।
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
वाराणसी
22/6/2022