प्रेयसी, गिनती, अंक/गोद
प्रेयसी
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चंचल चितवन प्रेयसी, कोमल कदली गात।
नीरज निरखे नीर को, नैंना करते बात।।
गिनती
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उल्टी गिनती बन गई, कलयुग की पहचान।
मिथ्या माया मोह में, फँसा हुआ इंसान।।
अंक/गोद
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पूत अंक शृंगार है, माँ जाए बलिहार।
रक्षहित संतान के, माता करे गुहार।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”