प्रेम…
प्रेम,
कितना उलझा सा शब्द हैं ना,
और
तुम,
कितना अनसमझा सा एक सवाल हो..
तुम पास थे,
तब तुमसे दूर रहने के बहानों में अटकी थी,
और जब तुम दूर हो,
तो तुम्हारें लौट आने की एक आस ,
चिंगारी की तरह मन में सुलग रहीं हैं,
तुम्हें पुकारें … तो कैसे पुकारें….
तुम हो … फिर भी कहाँ हो?
हर एहसास में तुम्हें बसाना हैं,
लेकिन समझ सको .. वो जज्बात तुम्हारें पास कहाँ हैं,
हर दर्द में, तुमसे लिपटकर रोना चाहा था,
हर खुशी को तुम तक ही सिमटना चाहा था,
जिस्म को नहीं, तुम्हारी रूँह को अपनाना चाहा था,
जिस तरह मैं अपने हर दर्द को तुमसे बाँट रहीं थी,
तुम भी तो मेरी आँचल में अपना सर्वस्व पा लों,
बस..यहीं एक सत्य समझा था,
काश! तुम इन बातों को समझ सको,
मेरी आखरी साँस से पहले
लौट आओगे ,इन पलों में मेरा अपना बनने के लिए,
जितना कुछ बाकी बचा हैं,
सिमट ना सकों तो कोई गम नहीं,
लेकिन इस बार सब कुछ तुम कहीं खो ना दो हमेशा के लिए…
उम्मीद .. जिंदा रहेगी मेरी आखरी साँस तक,
गली तुमने बदल ली हैं,
लेकिन,
मेरे अपनेपन का दरवाजा आज भी तुम्हारे इंतजार में,
खुला हैं … खुला ही रहेगा …मेरी मौत के बाद भी …
#ks