प्रेम
तुम्हारी बातें जैसे..
एक शीतल तिलिस्म!
इच्छाओं की परियों के साथ
ऑंख भींच कर खिलखिलाता..
नन्हें शिशु सा चकित तुम्हारा प्रेम!
घुलने लगा है पूरे व्यक्तित्व में!
प्रतिबिंबित होने लगे हो..
मेरी हर कृतियों में तुम!
कोमलता से..
थोड़ा झिझक कर मिलने चली हैं..
मेरी अभिव्यक्तियाॅं..
तुम्हारी आतुरता से!
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ