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21 Jan 2021 · 1 min read

‘प्रेम’

मानव जीवन नीरस होता ,
प्रेमसुधारस पास न होता ।

नीड़ज भी उन्मुक्त न होता,
भोजन भी रसयुक्त न होता।
प्रेम बिना यह सृष्टि न होती, और कहीं उल्लास न होता ।।

मेघ नहीं पृथ्वी पर छाते,
अन्न भला वह क्यों उपजाते।
स्याह अमावस रात न होती प्राकृत पूरणमास न होता ।।

प्रेम बिना कविता रस खोती,
पाठक की रुचि लेश न होती ।
यौवन का कुछ अर्थ न होता, प्रेम बिना विश्वास न होता ।।

प्रेम बिना सरिता जल खोती,
सागर की महिमा कम होती ।
कोयल मोहक गीत न गाती कुंजन में परिहास न होता ।।

विधा-
दोधक छंद आधारित गीत
भगण*३ + गु.गु.
प्रबुद्ध गुणीजनों को सादर समर्पित किंचित प्रयास

जगदीश शर्मा सहज

Language: Hindi
Tag: गीत
3 Likes · 4 Comments · 311 Views
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