‘प्रेम’
मानव जीवन नीरस होता ,
प्रेमसुधारस पास न होता ।
नीड़ज भी उन्मुक्त न होता,
भोजन भी रसयुक्त न होता।
प्रेम बिना यह सृष्टि न होती, और कहीं उल्लास न होता ।।
मेघ नहीं पृथ्वी पर छाते,
अन्न भला वह क्यों उपजाते।
स्याह अमावस रात न होती प्राकृत पूरणमास न होता ।।
प्रेम बिना कविता रस खोती,
पाठक की रुचि लेश न होती ।
यौवन का कुछ अर्थ न होता, प्रेम बिना विश्वास न होता ।।
प्रेम बिना सरिता जल खोती,
सागर की महिमा कम होती ।
कोयल मोहक गीत न गाती कुंजन में परिहास न होता ।।
विधा-
दोधक छंद आधारित गीत
भगण*३ + गु.गु.
प्रबुद्ध गुणीजनों को सादर समर्पित किंचित प्रयास
जगदीश शर्मा सहज