प्रेम
प्रेम
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बंधन नेह का नेह से , प्रेम इसी को मान
उपजे अनुपम राग जब ,आसक्ति उसे जान
रिश्ते नाते धरा पर, पगे प्रेम की राह
दिल से दिल का मेल हो , पनपे गहरी चाह
मिले जिस्म से जिस्म जब ,रचता रिश्ता अनूप
धूम मचाती जिन्दगी, दिखे प्रेमी सरूप
चाह एक दूसरे की , ले ले जब आकार
बन्ध प्रेम के खुले है , रचे सृजन साकार
प्रेम प्रीत जब मधुर हो , आशा अनंत अपार
जीवन यात्रा सुगम हो, जीवन नौका पार
बंधन सांस का सांस से , जीवन का आधार
सांस नहीं जब रहे तो , जीवन है बेकार
इसी लिए सुन प्यारे , नहीं मोह को पाल
उठा बोरिया बिस्तरे , ले जायेगा काल