प्रेम
निर्मल,पावक प्रेम है, पुण्य तीर्थ का धाम।
गंध प्रीत की हो जहाँ, बसते राधा-श्याम।।
बसते राधा- श्याम, बजे मधुरिम यह मुरली।
कर सोलह श्रृंगार, सजे राधा नित पगली।
बिछे प्रेम के फूल,जहाँ करते हैं शीतल।
जिस मन में है प्रेम ,बहुत ही होता निर्मल।।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली