प्रेम
यूँ ही फुरसत में अचानक मन में एक ख्याल आया |
प्रेम चीज क्या है जाने क्यों मन में यह सवाल आया ?
आखिर यह मर्ज क्या है ? जो इंसान को दीवाना बनाती है |
इस प्रेम के चक्कर में पड़कर सब कुछ भुला देती है |
क्या ये जिंदगी संवार देती है या बेरंग बना देती है ?
प्रेम चीज क्या है जाने क्यों मन को उलझा देती है ?
इस प्रश्न को खोजने जब चारों ओर दृष्टि मैंने दौड़ाई |
तो प्रेम का अनूठा रूप देखकर आँख मेरी बहुत मुस्काई |
पिता के बाजुओं में और माँ के आँचल में ये सिमटा है |
भाई-बहन के अटूट बंधन ये प्रेम हिलोरें लेता है |
छोटे बच्चे के बचपन ये प्रेम अठखेलियाँ लेता है |
ममत्व को छूकर आत्मा को प्रेम से भरता है |
फूलों में छिपता भ्रमर रस रूप में प्रेम खोज लेता है |
बगीचे में अपनी गुंजन से फूलों की सुंदरता बयां करता है |
चाँदनी रात में प्रेम मग्न टिमटिमाते तारें आकाश से सिमटे है |
चंदा अपनी शीतलता से प्रेम की शीतलता बिखेरता है |
राधा का जो निश्छल प्रेम श्रीकृष्ण में बसा दिखता है |
मीरा की भक्ति का रस भी इस प्रेम में ही बसता है |
कुछ भी कहो है इस प्रेम के कई रंग |
जो आत्मा को करता है इस प्रेम से मग्न |
इस प्रेम में मेरा मन भी रमने को भरपूर करता है |
यह प्रेम का रूप मात्र मनुष्य में खूब बसता है |