प्रेम
प्रेम
वो क्या था ! वो कौन था ?
अंतर्मन के
गहरे सागर में
सीप मे मोती बनाता
वो अनजाना
शिल्पकार
वो क्या था ! वो कौन था ?
पाषाण शिला में
छुपे हुए बीज को
जीवन से सरसाया
आँखें खोल
वो हुलसाया था
उसे जगाता ,उसे उगाता
वो क्या था ! वो कौन था ?
शैल हिमखंडो को
छू कर जिसने
तरल किया
निर्मल धारा का
आह्वान किया
वो क्या था ! वो कौन था ?
झरते पत्तों के अवशेषों पर
जिसने बसंत का राग लिखा
नव जीवन का
आलेख रचा
वो क्या था ! वो कौन था ?
भ्रमित है
चकित है
सोचता मन
जो जीवन से
कभी मिटा नहीं
गहरे में जो सदा बसा
जिसका अस्तित्व
कभी मिटा नहीं
चिरजीवित
वह प्रेम ही तो था,वही तो प्रेम है