प्रेम
सकल सृष्टि में दृष्टगोचर, अनंत और है क्षितिज तक
ये प्रेम अनादि सतत शाश्वत, सनातन जगत ही प्रेम है
ये प्रसन्नता का पर्याय भी, पूजा भक्ति का सार भी
ये परिभाषा मौन की, नयन समर्पण आधार भी
ये प्रेम एक बंधन है खुला, ये प्रेम जिसको भी मिला
प्रसून प्रेम प्रातः खिला, ये प्रेम है शशि की कला
प्रेम अरुण की लालिमा, धरती की कुशल ये क्षेम है ………
ये प्रेम शिव की कामना, शक्ति की अविचल धारणा
ये प्रेम प्रभु आराधना, हर साधक की है साधना
शब्दों में प्रेम इक प्रार्थना, होती प्रेम मूक उपासना
चरणों में प्रेषित वन्दना, रागों में बसन्त गुन्जन घना
सावन की प्रेम मल्हार है, फुहार फागन ये प्रेम है ………..
अध्यात्म ज्ञान विज्ञान भी, आत्मा की पहचान भी
समस्या का समाधान भी, करुणा दया का दान भी
ध्यान योग प्राणायाम भी, समाधि या व्यायाम भी
दृष्टि, सृष्टि, वृष्टि कुल, प्रेम ही हर आयाम भी
प्रेम ही तांडव महारास, हर लहर तरंग ये प्रेम है …………………..
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