प्रेम
प्रेम…………
ना अल्फाज़ों का मोहताज़
ना ख़ामोशी का ग़ुलाम
गुफ़्तगू से परे है प्रेम ।
ना तारीखों का गुलदस्ता
ना तोहफ़े का फूल
यादगार् पलों का बागीचा है प्रेम ।
ना मंज़िल है
ना रास्ता है
खुद ही खुद का मुकाम है प्रेम ।
ना तुझ मे है
ना मुझ मे है
‘अहम’ से ‘हम’ तक का सफर है प्रेम ।
ना इंतज़ार – ए – मोहब्बत
ना इज़हार – ए – इश्क़
जज़्बातों का समंदर है प्रेम ।
ना वादों का सौदा
ना शर्तों की मांग
निभा सको उम्र भर वह एहसास है प्रेम ।
ना तक़दीर मे शामिल
ना लकीरों मे
कर्म से धर्म तक की रेखा है प्रेम ।
ना आरम्भ है
ना अंत है
अंतर्मन का अनंत भाव है प्रेम ।
ना अधूरा है
ना पुरा है
मानवता की संपूर्णता है प्रेम ।
-रुपाली भारद्वाज