प्रेम
टूट कर भी जुड़े प्रीत की डोर है
लाख चाहें न मुड़ती किसी ओर है
प्रेम मरता नहीं कर जुदा दे भले
सांस अंतिम भी करती न कमजोर है
@सुस्मिता सिंह ‘काव्यमय’
टूट कर भी जुड़े प्रीत की डोर है
लाख चाहें न मुड़ती किसी ओर है
प्रेम मरता नहीं कर जुदा दे भले
सांस अंतिम भी करती न कमजोर है
@सुस्मिता सिंह ‘काव्यमय’