प्रेम
सुख की बहती जो अविरल धारा
माँ के स्नेह पे जग ये वारा
पिता भी है स्नेह का गागर
जिसने है जीवन को संवारा
प्रेम के बंधन में बंध जो आती
पत्नी बन अर्धांगिनी कहलाती
सुख -दुख की जीवनसाथी
रिश्ते को प्रेम से निभाती
कच्चे धागों की रेशम की छोर
बहन भाई की प्यार की डोर
नोक-झोक और प्यार का संगम
भाई के साथ से मिट जाए गम
घर की लक्ष्मी बेटियां
माँ पिता का सम्मान है
करती दो घरों को रौनक
उनसे ये जीवन जहां है
नारी बन आती इस धरा में
कई रिश्तों में बंध जाती है
कहने को तो हैं रूप अनेक
कभी-कभी अपना स्वरूप
ही वो भूल जाती है
ममता रानी
झारखंड