प्रेम
प्रेम है पावन,
प्रेम अनूठा, सच्चा सच्चा
प्रेम मधुरता,
शहद सरीखा मीठा मीठा
प्रेम नशा है,
भरा भरा सा मय का प्याला
प्रेम अतल है,
अर्णव जैसा गहरा गहरा
प्रेम सजल है,
खारा पानी नयनों भरता
प्रेम अमर है,
देह संग न कभी है मरता
प्रेम अजर है,
उम्र संग गहराता चलता
प्रेम है जीवन,
प्रेम विहीन नहीं मानवता
प्रेम असीम है,
अन्तहीन अम्बर के जैसा
प्रेम अघट है,
दिनकर मानिंद दीप्तिमान सा
प्रेम अटल है,
नभ में अविचल ध्रुव तारे सा
प्रेम है निर्मल,
पंक में खिले शतदल जैसा
प्रेम है सुन्दर,
प्रेम रहित सब रुचिहीन सा
प्रेम है अमृत,
नवजीवन संचारित करता
प्रेम दिव्य है,
ईश सदृश ही पावन पावन
प्रेम है शाश्वत,
समय से परे सुखदायक सा ।
डॉ सुकृति घोष
ग्वालियर, मध्यप्रदेश