प्रेम….।
प्रेम….।
क्या है प्रेम?
मेरे लिए तो एक दूसरे को समझना है प्रेम
निश्वार्थ भावना है प्रेम।
दुःख-सुख में साथ रहना है प्रेम।
बस,और क्या है प्रेम?
मगर, अब प्रेम भाषा बदल गई है,
अब प्रेम देख सकता है।
यह दौलत,शोहरत देखता है।
यह रूप रंग और शरीर देखता है।
तभी तो मित्रों…
अब,बदनाम हो गया है प्रेम।
:कुमार किशन कीर्ति