प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं
मुझ को प्रेम की भाषा का पता है
मैं प्रेम करता हूँ हर चीज से
प्रेम ही तो है जो तोड़ दे सरहद की दीवार
क्यूंकी इस में जीते हैं जीव बस प्रेम से !!
कितना मधुर सा लगेगा जब
प्रेम का वातावरण हर तरफ बनेगा
न क्लेश होगा, न क्रोध होगा
प्रेम के मिलन का बस माहोल होगा !!
खुशनुमा माहोल से जगमग होगा
न डर , न खतरा, न कत्लेआम होगा
किसी भी पल घर से निकलो,
मिलने वालों के दिल में प्रेम होगा !!
कब होगा वो मिलन संग कान्हा वाला
हर रंग में कभी भी , न भंग होगा
लीला तो रची है उस ऊपर वाले की
बनाने से ही तो हम सब से यह माहोल होगा !!
अजीत तलवार
मेरठ