//…प्रेम – समीक्षा…//
//… प्रेम समीक्षा… //
पूर्ण हुआ है जब से मेरा ,
जीवन का पहला चरण
बीत गया है बचपन ,
आ गया है यौवन…!
प्रस्फुटित हुई प्रेम की ,
एक अनछुई सी किरण
खिल उठा मेरा मन ,
खिले मधुबन में सुमन…!
कोमल-सुकोमल
गुलाब सा महकती ,
मधुमति , मदमाती
प्रेम की कलियों का ,
लिए सुखद अहसास…!
रग – रग में झरती ,
बूंद बनकर चांदनी
निर्झर झरनों से ,
अनबुझी , बुझी
मेरे मन की प्यास…!
अनंत आकाश की,
नीली हुई काया
प्रेम के पावन स्पर्श से ,
नित खेल खिला रही माया…!
मन दूर कहीं ,
किसी की यादों में ,
तन्हा – तन्हा कुछ
इस तरह खोया है…!
प्रेम की समीक्षा में ,
इस पन्ने पर ,
वह अपनी मचलती ,
भावनाओं को पिरोया है…!
प्रेम की जलती ,
दीप – शिखा से
मेरे जीवन में ,
फैला अनंत प्रकाश…!
दूर हुआ मेरा ,
अंधकार मन का
होने लगा मुझे अब ,
जीने का अहसास…!
चिन्ता नेताम ” मन ”
डोंगरगांव (छत्तीसगढ़)