प्रेम समर्पण
मेरा सब कुछ अर्पण तुझको,
मेरा प्रेम समर्पण तुझको।
सब कुछ खोकर पाया तुझको।
नही चाह अब कुछ भी मुझको।
अपना सब कुछ वार दिया,
तूने क्या इकरार किया।
फिर छोड़ मुझे उन राहों में,
दर्द घुटन की बाहों में।
क्यों ऐसा ये प्यार किया ,
जीना भी दुशवार किया……..
नही आस थी मुझको ऐसी,
झूठी थी कसमे सब कैसी।
जब प्रेम नही था तेरे अंदर,
छल का क्यो दिखलाया समंदर।
ऐसी क्या मज़बूरी थी,
जो दूरी बहुत जरुरी थी।
एक बार तो बतलाते,
बस हम चुप ही रह जाते।
क्यों ऐसा ये प्यार किया,
जीना भी दुशवार किया…….