प्रेम व फ़र्ज़
गर मैं तुझे पसन्द हुँ तो, तूँ भी तो मुझे पसन्द है,
बांधने को नेह बन्धन, ये दिल भी तो रजामन्द है।
लेकिन मेरी ये शर्त एक, तूँ केवल इसे मान जाना,
प्रेम में बाधा नही पर, मेरे फ़र्ज़ के आड़े न आना।।
ना कभी भी यूँ जिक्र करना, फौज के बारे में तूँ,
ना कभी भी हमें बांधना, आँसुओ के धारे में तूँ।
गर मैं पत्थर हूँ सनम, तो मोम सा मुझे न बनाना,
प्रेम में बाधा नही पर, मेरे फ़र्ज़ के आड़े न आना।।
मैं हसरते जीवन की तेरी, पूरी करने का वचन दूँ,
तू फूल मांगे एक जो, तो मैं ला तुझे पूरा चमन दूँ।
पा प्यार का पावन शहद, अमृत कर्म का न हटाना,
प्रेम में बाधा नही पर, मेरे फ़र्ज़ के आड़े न आना।।
मैं कल तेरा था, आज तेरा हूँ, मैं तेरा हरदम रहूँगा,
अपनी ख़ुशियाँ दे के तुझको, तेरे सारे गम सहूँगा।
ये भरोसा कर के मुझ पे, घर के बगिया को सजाना,
प्रेम में बाधा नही पर, मेरे फ़र्ज़ के आड़े न आना।।
तुझको अगर मंजूर है, तो ले हाथ मेरा भी वचन है,
सबसे पहले तूँ है मेरी, पर तुझसे पहले मेरा वतन है।
साथ देना उम्र भर, बीच मझधार में छोड़े न जाना,
प्रेम में बाधा नही पर, मेरे फ़र्ज़ के आड़े न आना।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०४/११/२०१९ )