प्रेम विच्छेद
हमारी साँस बाकी है,
हमारी आस बाकी है ।
कैसे हो जाऊँ हतोत्साहित ,
सभी प्रयास बाकी है ।।
उनको लगता होगा कि,
मन से हार गया हूँ मैं ।
चुनौती दूँगा मैं सबको,
अभी साहस बाकी है ।।
थोड़ा इकरार बाकी है,
थोड़ा इनकार बाकी है ।
कैसे कर लूँ मैं मतभेद,
थोड़ा इजहार बाकी है ।।
वो गालियाँ देते हैं हमको,
यूँ ही चुपचाप सुनता हूँ ।
मैं भाषा की मर्यादा का,
बहुत पालन करता हूँ ।।
इसका मलतब, नहीं कि तुम,
हमारे सिर पे चढ जाओ ।
अभी जो चुप, हूँ मैं तो,
तुम मनमर्जी, कर जाओ ।।
मेरा अपमान, जो तुमने किया,
मैं ये, भुला नहीं सकता ।
गर तुम माफी भी माँगोगे,
तो तुम्हें, अपना नहीं सकता ।।
तेरी जो गालियाँ है वो,
मेरे इस दिल को चुभती है ।
ना मुझको सोने देती है,
ना खुद मन से ही सोती है ।।
जवाब मैं दूँगा, जब तुमको,
तो मत कहना, माफी दे दो ।
हिसाब जो लूँगा मैं तुमसे,
तो ये मत कहना, कि जाने दो ।।
हमारे ख्वाब की मल्लिका,
कहीं भी तुम ना जाना ।
कभी जो याद आऊँ तो,
थोड़ा सा मुस्कुरा देना ।।
वतन पे मिटने का हक,
यहाँ पे हम सभी को है ।
मगर कोई नहीं मिटता,
हमें इस बात का गम है ।।
अपनी गलतियों को तुम,
अब छुपा नहीं सकते ।
कैसा होगा वार इधर से,
ये बतला नहीं सकते ।।
वो इनकार करेंगे या इजहार,
ये मालूम, नहीं मुझको ।
पर इतना जानता हूँ मैं,
तुमसे अभी प्यार बाकी है,
उनसे टकरार बाकी है ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 08/08/2020
समय – 02 : 02 (रात्रि)