प्रेम रोग मे हर कोई दिखता बीमार है
प्रेम रोग मे हर कोई दिखता बीमार है
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भावों की एकता से खिलता विचार है,
नजरों की देखनी से मिलता दीदार हे।
दिल की जुस्तजु कोई न् समझ पाया,
उल्फत के बाजार में नजारा शुमार है।
दिलफिरे अक्सर देखे प्यार के नशे में,
मजलिस मे दीवाना बनता खूंखार है।
अपनों की ठोकरें खाकर गिरते आये,
गैरों की महफिल मे मिलता दुलार है।
संभले न् संभल पाया प्रेमी मनसीरत,
प्रेम रोग मे हर कोई दिखता बीमार है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)