प्रेम रोग नहीं ओषधि है ।
कौन कह रहा प्रेम है मुश्किल,
आंख बंद कर देख रहा हूँ ।
स्वप्न में रोज मुलाकाते है ।
प्रेम रस भरी बातें है ।
नहीं जरूरी सामने आये,
हम आंखों से ही बतियाए।
हृदय में भरा प्यार का प्याला,
वह ही जाने जो है रखवाला।
छिपकर छवि मैं देख रहा हूँ ।
प्रेम न कोई रोग रोक है ।
प्रेम न कोई दोष रोष है ।
यह जीवन की औषधि है ।
सबकी अपनी अपनी परिधि है ।
✍ विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र