प्रेम रूप साकार
***** प्रेम रूप साकार *****
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ढाई अक्षरों का शब्द प्यार है,
हो जाए तो बना दे लाचार है।
मन ही मन हिलोरे खाती तरंगे,
लहरों सी शीतल प्रेम फुहार है।
प्रेम परिंदे बैठें हैं सागर किनारें,
सलिल सा सुंदर सारा संसार है।
धुंध सा निश्छल मन में समाये,
साक्षात मुरशद का हो दीदार है।
कोई किसी की भी नहीं सुनता,
सीधा – सादा सच्चा व्यापार है।
दिल की भाषा प्रेमी ही समझे,
लोग तो समझते गुनाहगार है।
आँसू मोती बन कर हैं बरसते,
छाया रहता हर पल खुमार है।
कभी दुनिया समझ नहीं पाई,
प्रेम तो स्वर्ग का मुख्य द्वार है।
वासना में अंधे प्रेम के दुश्मन,
बदनाम करते कर बदकार है।
ये दो रूहों का होता मिलन है,
परम् परमेश्वर रूप साकार है।
प्रेमरोगी बने जो गर मनसीरत,
उम्रभर के लिए होता बीमार है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)