प्रेम-रस रिमझिम बरस
हरा रंग,
अंग-अंग,
मैं चली,
प्रीतम संग
मिलन को;
पिया गगन,
श्याम वर्ण,
मनमोहन,
मचल रहा दिल,
छुअन को;
प्रेम रस,
रिमझिम बरस,
प्यासा दिल,
कह दो
सजन को;
पिया संग,
अंग-अंग,
डूब जाऊंँ,
उर्वर बनूंँ,
नवजीवन को।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)