प्रेम रंग
******* प्रेम-रंग *******
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खोया – खोया रहता साया,
प्रेम रंग की कैसी माया।
खोई – खोई रहती वो भी,
क्या बीमारी जान न पाया।
सौहार्द भँवर डूबे हम तुम,
प्रेम – रोग में रोगी काया।
जन्म-जन्म का साथ हमारा,
छोड़ी जगत की मोहमाया।
दिन में सपने देखूं हर पल,
गीत अनुरागी रहूँ गाया।
बदरी बन बरसूं नयनों में,
आँसू बन नैनो में आया।
स्नेह राह में रहूँ भटकता,
कुछ ना विरही मन भाया।
प्रेम वर्षा बूँदों में भीगा,
अंग-अंग रहता महकाया।
शाम-सवेरे गान उसी का,
बिना तुम्हारे मैं कुमलाया।
काली जुल्फ़े गहरा बादल,
बंजर तन-मन में बरसाया।
प्रेम पूंजी भरा संचित धन,
जीवन की तू ही सरमाया।
कली-कली में रौनक आई,
भायी मन में कंचन काया।
रंग-रूप की छाई तरुणाई,
नशा इश्क़िया अंदर छाया।
फूलो से हरा-भरा उपवन,
भंवरे के मन में गहराया।
प्रथम-प्रेम देकर मैं आहुति,
अंतिम प्रेम ठौर बरसाया।
मनसीरत सागर का मोती,
अंजाने भय से घबराया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)