प्रेम रंग उड़े
******** प्रेम रंग उड़े ******
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दिल की आरजू है प्रेम रंग उड़े
रंजिशों के रंग रहें सड़े के सड़े
मुस्कराहटों के लद गए व्यापारी
खरीददार रह गए हैं पड़े के पड़े
अंधेरों की बस्ती में दिखाई न दे
चिरागों के ढ़ेर बिके धड़े के धड़े
मोहब्बत में हाल हो जाए है बुरा
वफाई को कोके रहें जड़े के जड़े
अपने ही पकडें गिरबानों से हमें
गिराते हौंसले आपस में हों लड़े
मनसीरत बेरहम है बहुत दुनियाँ
प्रेम उपासना बाढ़ में हैं हाथ फड़े
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)