प्रेम में मीरा बनी मैं
1=गीतिका छंद
प्रेम में मीरा बनी मैं, प्रेम में ही राधिका!
प्रणय करती हूँ कभी मैं, अरु कभी हूँ साधिका!
होंठ से जब जब लगूँ मैं, बाँसुरी की धुन बनूँ!
अंग से लिपटी रहूँ अरु, प्रीत के मुक्तक चुनूँ!
अनन्या “श्री”
1=गीतिका छंद
प्रेम में मीरा बनी मैं, प्रेम में ही राधिका!
प्रणय करती हूँ कभी मैं, अरु कभी हूँ साधिका!
होंठ से जब जब लगूँ मैं, बाँसुरी की धुन बनूँ!
अंग से लिपटी रहूँ अरु, प्रीत के मुक्तक चुनूँ!
अनन्या “श्री”