प्रेम में अहंकार/दोहे
प्रेम में अहंकार/दोहे
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प्रेम समर्पण शुद्ध है , अहंकार से दूर
जहां प्रेम में अहंकार, प्रेम आपसे दूर।1।
प्रेम प्रेम है, प्रेम बस, जगत प्रथम दस्तूर
जो चखि पाये प्रेम रस, जिए जीवन भरपूर।2।
अहंकार अरु प्रेम में, रहा सदा ही बैर
एकहि रहै,दूजा भगे,राखि शीश पर पैर।3।ू
संग अहं के प्रेम कहां,है नहीं अहं जहं प्रेम
प्रेम धरा अनमोल है, छाड़ि अहं कर प्रेम ।4।
हिय निवास है प्रेम का, अहं चित्त के संग
अंतस निर्मल आपका, रंगे प्रेम के रंग।5।
अहं आपसे दूर हो, चढ़े प्रेम का रंग
बिन प्रेम जीवन वृथा, रहें प्रेम के संग।6।
प्रेमी को पागल कहे, सो नर पागल होय
मतिविहीन बिनु प्रेम के,जीवन दूभर होय।7।
जीव विकल है प्रेम बिन, प्रेम जगत का सार
कष्ट सबहिं काफूर जब, संग प्रेम संसार।8।
आस प्रेम के संग है,करे निराशा दूर
अहंकार में प्रेम हो, परस्पर नामंजूर।9।
अहं ‘कठफोड़ा’ प्रेमतरु, प्रेम जुड़े संबंध
अहं प्रेम को दूर करि, शत्रुहिं करे एकत्र।10।
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–राजेंद्र प्रसाद गुप्ता, मौलिक/स्वरचित।