*****प्रेम में अंधे न बनो*****
प्रेम की भाषा को समझ कर प्रेम करो
प्रेम में डूब कर न इतना अँधा बनो
कि प्रेम और वासना का अन्तर न रहे
फिर घर के अंदर भी आना इक समंदर लगे !!
प्रेम किया जैसे राधा रानी ने कान्हा से
तुम भी प्रेम करो जैसे किया था मीरा ने
भरत ने प्रेम की खातिर राम को मान दिया
लछमन ने भी सीता का था सम्मान किया !!
आज का प्रेम अँधा बनकर डस रहा है
जिस के पीछे लगन लगी उस को हर रहा है
क़त्ल करता जा रहा है अपने परिवार का
यह कैसा प्रेम है यारो इस जहान का !!
जरूरी नहीं कि जिस को तुम चाहो वो
तुमसे ही प्रेम करे और तुम्हारी बने
यह तो जन्मो जन्मो का मेल है
जिस के आगे “अजीत” दुनिया सारी फेल है !!
न अपने अरमानो को दबा के जीवन को गुजरो
प्रेम की भाषा को समझो और जीवन गुजरो
आदर सत्कार से घर परिवार का मान रख के
प्रेम को बस आगे बढाओ,और फिर प्रेम करो !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ