प्रेम भरी चिट्ठियाँ
अतीत के गर्भ में खो गई मेरी प्रेम भरी चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
प्रेयसी से अतरंग प्यार की भावनाओं का एहसास थी
इन्कार करार प्यार तकरार जैसे जज्बातों का वास थी
ढूंढता हूँ, पर कहीं नहीं मिलती वो राजदार चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
रूठना-मनाना कभी आखों से बतियाना कभी
इन्तजार में थक हार कर उस पर सठियाना कभी
दिवानगी नाराजगी विरानगी की प्रेम भाती चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
रंगीन लम्हों को थी समेटे चिट्ठियाँ अपने साथ में
आँखें नम हो जाती हैं जब यादें आती हैं ख्वाब में
जड़ बना जाती हैं तन को वो खोई हुई चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
उनकी यादों का झरोखा जब है मन को टीसता
रोम रोम रो पड़ता है चेहरा आँसुओं से भीगता
गागर में सागर सी थी वो अविस्मरणीय चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
भूल नहीं सकता वो लम्हा जो था प्रेम विच्छेद का
लुट गया था सर्वस्व उस पल जो था उससे संयोग का
खुद दफना दी थी धरा में दिल को रोंदती थी चिट्ठियाँ
बेहतरीन थी प्रेम की चासनी में डूबी हुई चिट्ठियाँ
– सुखविंद्र सिंह मनसीरत