प्रेम-बीज
【प्रेम-बीज】
प्रेम-बीज
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माँ की नाभि से अंकुरित होता है प्रेम का बीज..
पिता के द्वारा सींचा जाता है….
भाई बहनों के साथ झूमता है डालियों पर..
आँगन,घर,गलियाँ,द्वार सब
प्रेम के रंग में रंग जाते हैं
फिर मिलते हो तुम,चूमती हूँ तुम्हारा अंग-अंग
फिर तुम्हारे रोम-रोम में रम जाती हूँ मैं
फिर ये प्रेम लताएं फहराने लगती हैं तुम्हारे दिल के आँगन में
और पहुंच जाती हैं तुम्हारी आत्मा के शिखर तक
जहाँ प्रेम है वहाँ बस प्रेम है
न किसीसे ईर्ष्या , न द्वेष , न और कोई लालसा
बस प्रेम
प्रेम
प्रेम !
●2
मैं तुम्हें क्या दूँ…?
★★★
कमल या फूल गुलाब दूँ ?
मैं सोचती हूँ , तुम्हें क्या खिताब दूँ ?
हवा को कह दूँ झूमे तुम्हारे आने पर ?
फूलों की बरसात उसके साथ दूँ ?
मैं सोचती हूँ तुम्हें क्या जवाब दूँ…?
पाती लिखूँ या ईमेल से तार दूँ ?
पढ़-पढ़ के जो दिल न भरे,ऐसी कुछ सौगात दूँ ?
सितारे बिखेर दूँ , चाँद के आर पार दूँ ?
मैं सोचती हूँ तुम्हें क्या जवाब दूँ…?
मेंहदी की खुशबू आँखों का छलकता प्यार दूँ ?
जो लब से कह न सके , धड़कते दिल का इज़हार दूँ ?
तुम आओ मेरे आगे ढूँढती नजरों का सलाम दूँ ?
मैं सोचती हूँ तुम्हें क्या जवाब दूं…?
सदियों की तड़प,खुद की बेख्याली,
जर्रे जर्रे में बसी तुम्हारी खुशबू का हिसाब दूँ ?
तुम चंदन,मैं खुशबू,लिपटकर तुमको प्यार दूँ ?
मैं सोचती हूँ तुम्हें क्या जवाब दूँ…?
●3
चौदह वर्ष
===============
मेरी चौदह वर्ष पुरानी ज़ेहन में बसी
दो आंखें
एक पल को मन किया तो था
कि उस अकेले कमरे में तुम्हारे
कोमल हाथों के महकते पौधे में लता सी
लिपट जाऊँ
फिर तुम्हारे नजदीक बैठकर
तुम्हारे लहराते केशों को सहलाते हुए
अपने दामन में समेट लूँ तुम्हारे सारे
अमृत समान आँसू !
मगर क्या करूँ ? मेरी देह को देखती
करोड़ों निर्दय आँखों का खौफ़ बना रहा!
मैं मिलना चाहती थी तुममें
ओस की उस बूँद की तरह
धरती की मिट्टी जिसे हौले से सोख़ ले
और जिसकी सोंधी-सोंधी खुशबू से
तुम्हारा सारा बदन महक जाए
फिर हाथों से जिसे छूने की
कभी जरूरत ना हो
बस सांसें छुएँ और दिल की धड़कन को
महसूस हो!
जब मैं तुम्हारी थी,तब तुम मेरे नहीं
अब जब तुम मेरे हो गए,तो मैं तुम्हारी नहीं
पर,ये दिल है कि अब भी ज़िद में है
कि बचपन की तरह एक बार फिर लुकाछुपी खेला जाए
मैं जाकर छुप जाऊँ
तुम्हारे आंगन के किसी कोने में
तुम बांधलो अपने हाथ के कलाबा से
और ये सारी दुनिया ढूंढती रहे! !
अब ये तो होने से रहा ख्वाबों में भी
पर,तुम रोज आज भी सुबह की पहली उजली शीतल धूप बनकर आते हो
तुमने चूमा है मुझे
पाँवों से सिर तक और सिर से पावों तक
लगातार लगातार
कभी बारिश की भीनी-भीनी फुहार बनकर
भिगा देते हो मेरे रोम-रोम को
कभी
बारिश की भीनी-भीनी नटखट फुहार बनके भींगा देते हो मुझको
कभी वासंती हवाओं से
खींचते हो मेरा आँचल
मेरी लट को कभी सुलझाते हो
तो कभी बिखरा देते हो!
चौदह वर्ष , हाँ चौदह वर्ष
मेरी रग रग में शबनम से घुले रहे हो
मेरा नाम,वैसे ही कुढ़ा रहे हो
या यूँ कहूँ कि अब तक मुझे
बहुत सता रहे हो
रात की दूधिया चांदनी,
तारों की झिलमिलाती बारात
दिखा कर ध्रुव तारा,
दे के प्रेम भरा स्पर्श नेग
मेरी मांग को हर रोज सजा रहे हो!
सुनो!
मेरे दाहिने आँख के आंसू
मेरे कंपकंपाते लब की
मंद-मंद मधुर मुस्कान
मेरे बाएं हाथ के नीचे भींगते तकिये का कोना
डायरी के पैराग्राफ पर उठते-बैठते हस्ताक्षर !
तुम हो तो हूँ मैं,
वरना कब की ही मर जाती!!
●4
प्रार्थना के स्वर
★★★
लगा दिया जाये मेरी जुबान पर ताला
रख दिया जाये ऊँचा से ऊँचा पहाड़ मेरे सीने के ऊपर
चुनवा दिया जाये दीवार के अन्दर
उफ् भी नहीं करूंगी
पर मेरी प्रार्थना के स्वर दब नहीं पायेंगे
उभरेंगे बार-बार !
चाहे सात तहें खुदवा के दफ़न
कर दिया जाए मुझे
जैसे हड़प्पा मोहनजोदड़ो की सभ्यता
समा गयी धरती के अंदर
और उसका कोई साक्ष्य भी न रहे
प्रेममयी इकतारा की गुंजाइश
खतम करदी जाए
और देखते रहना
कहीं नीर ना भरे आंखों की कोरों में
अगर भरें तो फिर बहें नहीं ,
बहें तो हरिद्वार ना बने
लाल दुपट्टा ना सींचने लगे पाषाण के शिलालेख !
तुम चाहे लाख जतन करलो
मेरे स्वर को दबा नहीं पाओगे
प्रेम में व्याकुल होकर चटक जाएंगे पेड़ पहाड़, दीवारें….. सब
नदी की धारा बह निकलेगी
और समन्दर उसे अपने आलिंगन-पाश में
बाँध लेगा
तब मोती,सीपी ,शंख…लहरों से किनारे को चूमेंगे
और.. पत्थरों पर फिर फूल खिलेंगे !
मेरी प्रार्थना के स्वर गूंजते रहेंगे आकाश में
और धरती उन्हें सहेजती रहेगी ।
वे उभरेंगे बार-बार !
बार-बार !
●5
तेरे इश्क़ में
★★★
मैं तुमसे सारी जिंदगी बैठ कर बतियाना चाहती हूँ!
तुम्हें अपने सारे ग़म और ख़ुशी दिखाना चाहती हूँ!
जिन्हें लब के रस और छुअन से जूठा नहीं करना!
ताउम्र अपनी आंखों में तुमको ही पाना चाहती हूँ!
मेरी मुहब्बत को तुम समझो या कि ना समझो!
अपनी दुनिया तुम्हारी मोहब्बत में लुटाना चाहती हूँ!
मेरी ज़ात, मेरी मज़हब और मेरे खुदा हो तुम!
तुम्हारे आगे उस ईश्वर को भी मैं भुलाना चाहती हूँ!
तेरा-मेरा प्यार सिवा एकतरफा के तो कुछ भी नहीं!
अकेले ही तेरी राह में बिछके बिखर जाना चाहती हूँ!
गहरी है तेरी इश्क़-ए-फ़ानी मेरे हमराज मोहब्बत मेरी!
तेरे इश्क में डूब के नस-नस में उतर जाना चाहती हूँ!
●6
दो कदम
★★★
हम जब भी मिले..
बड़ी-बड़ी इमारतों के बड़े शहर में मिले…
जहाँ दो कदम के फ़ासले भी
-मिलों के सफ़र होते हैं!
हम जब भी मिले….
जिंदगी की भागम-भाग में मिले
माथे पर खिंची लकीरों की शिकन तक जल गई..
मैं तुम्हें देखती रह गई..
तुम मुझे देखते रह गए..
और यह जिंदगी सन्नाटे में गुजर गई!
मैं चाहती तो थी तुम्हें गाँव की उस पगडंडी तक ले जाना..
जहाँ से तुम्हारे पास आने के लिए हर रास्ता सही होता है
मेरे घर के सामने कनेर के पीले-पीले फूल ढकिया भर-भर के गिरते थे!
उन्हें चुन-चुनकर सिर्फ तुम्हारे लिए ही सजाना चाहती थी!
तुम्हें याद तो होगा?
मैंने तुम्हें पहाड़ी वादियों में देखा था..
ऐसे वक्त में
जब आगजनी पहाड़ों पे हर शाम हुआ करती थी..
और उसी बीच
जब एक दिन पहली बार तुम्हें देखा…
तो तपती हुई दोपहरी और
झुलसती झाड़ियां ….सब शीतल हो गयीं
अगर मैं कभी तुम्हें ले जा सकी तो
ले जाऊँगी..
अपने कॉलेज के पीछे दूर तक फैले आम के बगीचे में
और वहाँ के सबसे पवित्र कहे जाने वाले तालाब पर
फिर उसके किनारे के मंदिर की
सीढ़ियों पर
सीढ़ियों पर बडे इत्मीनान से बैठेंगे हम दोनों
जहाँ गुलमोहर के फूल झर झर कर
गिरते हैं।
अबकी देखना हम ऐसे मिलेंगे जैसे अब तक नहीं मिले
और ये याद रखना!
हम मिलेंगे
मिलेंगे जरूर…
●7
★
रोज़ मेरे सिरहाने में
तकिये के नम किनारे में
कुछ ओस की बूंदें गिरती हैं
वो तेरी हैं कि मेरी
कुछ समझ नहीं पाती हूँ
तुम कल भी नहीं आये थे
आज भी नहीं आये
जानती हूँ-
तुम कभी नहीं आओगे
वो नींद की सांकल पे
जो सपने रखे सजाकर
वो तेरे हैं कि मेरे
कुछ समझ नहीं पाती हूँ
●8
दिल की किश्ती
★★★
दिल की किश्ती को कोई शहर मिला ही नहीं..
आसमाँ दूर था और कभी ज़मीं मिली ही नहीं..
हमने चाहा था थामना जिनका हाथ..
उस हमसफ़र से कभी हमनवाई मिली ही नहीं
{वो कहते हैं आज कि तुम कौन हो मेरे?}
गर्दिश-ए-सफ़र को मेरे अंजाम मिला ही नहीं..
जिनको माना था हमने ख़ुदा-ए-क़िस्मत
हथेली पर लिखा नाम तकदीर में मिला ही नहीं…
क्यों भला हम धरें उन पर कोई तोहमत..
नसीब से ज्यादा किसी को तो मिला ही नहीं..
चाँद की ख्वाहिशें तो सभी करतें हैं..
और नादानों को सिला अब तक मिला ही नहीं…
तुम चमकते चाँद थे और मेरी चकोर की सी ख्वाहिशें ..
कई बरसातें बीत गईं , वो अरदास मिला ही नहीं..
उनके दर पे ऐ नीतू अपना दम निकले..
दिल-ए-अरमाँ को मुहब्बत का दम मिला ही नहीं…
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—-✍️नीतू झा