प्रेम बिना सब सून
अनमने बे-मेल रिश्ते, जिंदगी भर तक सतायें।
दो दिलों में टीस देकर, रातदिन सीना जलाएँ।।
यदि विचारों का समन्वय,आपसी में ही नहीं हैं।
तो कभी बेजान रिश्ते, भूलकर भी ना बनाएं ।।
प्रेम से यह सृष्टि चलती, प्रेम से सम्बंध फलते।
प्रेम छूमंतर हुआ तो, त्याग दें सब लालसायें ।।
आपकी वाणी किसी के, कर्ण का छेदन करे तो।
मौन रहकर जिंदगी को, कर्म करते ही बितायें ।।
विधि नियंता ने सभी के, पूर्व से सम्बंध जोड़े ।
आप इसको सत्य समझें, ग्लानि किंचित भी न लायें।।
आधार छन्द- “माधवमालती” (मापनीयुक्त मात्रिक, 28 मात्रा)
मापनी-“गालगागा गालगागा गालगागा गालगागा ”
समान्त- “आयें”, अपदान्त।
ॐ
“गीतिका’
जगदीश शर्मा